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Saturday, December 3, 2016

कैसे करें अदरक की उन्नत खेती

अदरक भारत की एक नकदी फसल है | विश्व के कुल उत्पादन का 60 प्रतिशत पैदावार भारत में होता है एवं विदेशों को निर्यात करके काफी विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है भारत में लगभग 37000 हैक्टेयर भूमि पर उगाकर 54000 टन शुद्द उत्पादन प्राप्त होता है भारत के कुल उत्पादन का 70 प्रतिशत भाग उत्पादित किया जाता है | अदरक को मसाले के रूप में प्रयोग करने के अतिरिक्त सुखाकर सोठ बनाया जाता है जिसका काफी औषधीय महत्व है | इसे अचार,मुरब्बा,चटनी के रूप में प्रयोग किया जाता है |
फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए आवश्यक है उन्नत किस्मों का चयन करके सघन कृषि पद्धतियों को अपनाया जाये |
रामोड़ीजनीरो :- यह ब्राजील की प्रजाति है जिसकी भारतीय जलवायु से सर्वाधिक उपज पायी गयी है |
चाइना :- यह चीन से लाई गई प्रजाति है जिसकी उपज 200-250 किवंटल प्रति हैक्टेयर है सोठ बनाने हेतु उत्तम प्रजाति है |
वरुआ सागर :- यह उत्तर प्रदेश में झाँसी की यह किस्म है इस प्रजाति की उपज 140-150 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |
1.सुप्रभा 2.सुरुचि 3.सुरभी इन किस्मों की पैदावार 250-300 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पाई गई है तथा सौंठ बनाने के सभी किस्में उपयुक्त है |
भूमि एवं जलवायु :- सामान्यतया अदरक की खेती उन सभी प्रकार की भूमि पर की जा सकती है जहाँ पर जल भराव की समस्या न हो परन्तु अच्छी उपज के लिए उत्तम जल निकास वाली जीवांश युक्त दोमट अथवा बलुई दोमट भूमि उत्तम है
खेत की तैयारी :- भूमि की तैयारी के लिए 2-3 बार गहरी जुताई आवश्यक है इसके लिए प्रथम जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करने के बाद 2 जुलाई देशी हल से करना चाहिए | प्रत्येक जुताई के बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए |
खाद एवं उर्वरक तथा प्रयोग विधि :- अदरक की खेती हेतु अधिक जीवांश युक्त भूमि की आवश्यकता होती है अत: 250-300 क्विंटल अच्छी पकी गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट खाद का प्रयोग प्रति हैक्टेयर करना चाहिए | प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हुआ है कि रासायनिक खाद के रूप में 100 किलोग्राम नाइट्रोजन 50 किलोग्राम फास्फोरस एवं 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना लाभप्रद है |
बुवाई का समय:- फसल से भरपूर पैदावार प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि बुवाई समय पर की जाए | बुवाई के समय का कन्दो के अंकुरण पर सीधा प्रभाव पड़ता है | अदरक की बुवाई का उचित समय अप्रैल से जून तक माह माना जाता है अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बुवाई मई माह में तथा मैदानी क्षेत्रों में जून माह में करनी चाहिए | जिससे तेज धूप से बीज को बचाया जा सके बुवाई के समय लाईन से लाईन की दूरी 45 सेटीमीटर तथा कन्दों की बुवाई करना चाहिए |
बीज का उपचार:- भवाई से पूर्व बीज को 1 ग्राम बाविस्टीन व थाइरम के 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए |
बुवाई की विधि:- चयनित एवं उपचारित कन्दों को लाईन से बोने के बाद मिटटी में अच्छी तरह ढक देना चाहिए व गोबर की अच्छी पकी खाद की एक या घास व् पत्तियों की तह से ढक देना चाहिए | ऐसा करने से कोमल अंकुरों को निकलते समय कोई नुकसान नहीं होता व अंकुरण जल्दी तथा अच्छी प्रकार से होता है |
मलिंच्ग:- बुवाई के तुरंत बाद हरी पत्तियों,पुआल,भूसा या कम्पोस्ट खाद आदि का प्रयोग करना चाहिए | इससे जमीन की उपरी सतह ढक जाती है इससे खेत में नमी बनी रहती है तथा अंकुरण शीघ्र होता है तथा फसल की प्रारम्भिक अवस्था में सिंचाई की कम आवश्यकता पडती है |
सिंचाई:- वर्षा ऋतु में प्राय: सिंचाई की आवश्यकता नहीं पडती है क्योंकि समय-समय पर वर्षा होती रहती है यदि समय पर वर्षा नहीं होती है | तो आवश्यकता सिंचाई कार देनी चाहिए | सर्दियों में फसल की स्थिति के अनुसार 10-15 दिन पर सिंचाई कर देनी चाहिए |
रोग,कीट व उपचार :- कन्द का सड़ना :- यह रोग मुख्य रोग से फूजेरियम ऑक्सीस्पोरम के कारण होता है इसमें नीचे की पत्तियां पीली पड़ जाती है बाद में सम्पूर्ण पौध पीला पड़ जाती है बाद में सम्पूर्ण पौध पीला पड़कर मुरझा जाता है भूमि के पास का भाग पनीला एवं मुलायम हो जाता है |
रोकथाम :- 1 रोगग्रस्त भूमि से बीज नहीं लेना चाहिए |
2.बीज को बुवाई से पूर्व डाईथेन एम.-45 दवा की के घोल से एक घंटे तक उपचारित करने के बाद छायां में अच्छी तरह सुखा लेना चाहिए |
कीट:- तना छेदक:- यह कीट तना को छेदकर उसका रस चूसता है | जिससे पौधा कमजोर पड़ जाता 
है और अन्त में सूख जाता है |
रोकथाम :- इस कीट की रोकथाम के लिए रोगोर नामक कीटनाशक दवा का 0.1 प्रतिशत का घोल दो माह के अन्तराल परर छिड़काव करने से इस कीट को नियंत्रित किया जा सकता है |

अदरक की उन्नत खेती की जानकारी के बारे में जानने के लिए निचे दिए गए विडियो के लिंक पर क्लिक करें |

Monday, November 14, 2016

अनार के कीट व रोगों की जानकारी

कीट प्रबंध
छाल भक्षक कीट : यह कीट वृक्ष की छाल को खाता है तथा छिपने के लिए अन्दर डाली में गहराई तक सुरंग बना डालता है जिससे कभी-कभी डाल/शाखा कमजोर पड़ जाती हैं |
नियंत्रण हेतु :-
1.सूखी शाखाओं को काटकर जला देना चाहिए |
2.क्यूनालफास 25 ई.सी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर शाखाओं/डालियों पर छिडके तथा साथ ही सुरंग को साफ करके किसी पिचकारी की सहायता से केरोसिन 3 से 5 मिलीलीटर प्रति सुरंग में डालें या रुई का फाहा बनाकर अन्दर रख देवें एवं गीली मिटटी से बंद कर देवें |
अनार की तितली : मादा तितली पुष्क कली पर अंडे देती है | इनमें लटें निकल कर बनते हुए फलों में प्रवेश कर जाती है | फल को अन्दर ही अंदर खाती है | फलस्वरूप फल सड़ कर गिर जाते है | नियंत्रण हेतु बाग को साफ सुथरा रखना अति आवश्यक है | फूल व फल बनते समय कार्बोरिल 50 डब्ल्यू पी.2 से 4 ग्राम या मोनोक्रोटोफास 36 एस.एल.एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें |
मिली बाग : इसके अवयस्क (शिशु ) प्राय : नवम्बर-दिसम्बर में बाहर निकल कर तने के सहारे चढ़ते हुए वृक्ष की कोमल टहनियों एवं फूलों पर एकत्रित हो जाते है तथा रस चूस कर नुकसान पहुंचाते है | इनके प्रकोप से फल नहीं बन पाते है | इसके द्वारा एक तरह का मीठा चिपचिपा पदार्थ छोड़ा जाता है जिससे काला कवक लग  जाता है | नियंत्रण हेतु पेड़ के आस-पास की जगह को साफ रखें | अगस्त-सितम्बर तक पेड़ लके थांवले की मिट्टी को पलटते रहे जिससे अंडे बाहर आकार नष्ट हो जाये | क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत या मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 50-100 फ्राम प्रति पेड़ के थांवले में 10-25 सेटीमीटर की गहराई में मिलावें | शिशु कीट को पेड़ पर चढ़ने से रोकने के लिए नवम्बर में 30-40  सेटीमीटर चौड़ी 400 गेज एल्काथिन की पट्टी जमीन से 60 सेटीमीटर की ऊंचाई पर तने के चारों और लगावें तथा इसके निचले अन्धी,तेज हवाओं के कारन टूट जाते है |

.पौधे की जड़े नर्सरी से उखाड़ते समय कम से कम टूटने पाए
.पौधों को लगाने से पहले किसी छायादार तथा नमी वाले स्थान में रखें |
.पौधे रोगों एवं कीटों से मुक्त होने चाहिए |
.पौधा कम से कम एक वर्ष पुराना होना चाहिए |
.सदाबहारी पौधों को गांची (मिट्टी के गोले के साथ ) जमीं से निकालना चाहिए |
.नर्सरी में पौधा गांची निकालने के बाद,घास,टाट के टुकड़े या अल्काथीन के टुकड़ों के साथ बांधना चाहिए,जिससे रस्ते में गांची  न टूटने पाए तथा जड़ों में उचित नमी बनी रहे |
.परिवहन के दौरान भी पौधों की उचित देखभाल अति आवश्यक है क्योंकि इस दौरान पौधों का जोड़ न टूटने पायें |
.नर्सरी से निकालने के बाद पौधे कम से कम समय में पौधे लगाने वाले स्थान पर पहुँच जायें |
.यदि पौधे को पहुँचाने में अधिक समय लगने की संभावना हो तो रास्ते में जड़ों पर लिपटी हुई घास अथवा टाट को पानी से तर करना आवश्यक है |
      उपरोक्त बातों को मध्यनजर रखते हुए बागवान उधान की व्यवस्था करें व फलदार पौधों का चुनाव करके गुणात्मक व अधिक पैदावार बढ़ायें | 
अनार के कीट व रोगों की जानकारी के बारे में जानने के लिए निचे दिए गए विडियो के लिंक पर क्लिक करें |   https://www.youtube.com/watchv=cH_5Y92mMv4                                                                                                                                                                                                                

पॉलीहाउस फसलों के कीट एवं उनका समन्वित प्रबंधन

जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए बेमौसमी फसल लेने के लिए तथा बढ़ती हुई आबादी की खाद्यन्न आपूर्ति को नजर में अखते हुई विभिन्न फसलों के उत्पादन के लिए पॉलीहाउस विधि को तैयार किया गया | हरियाणा में पॉलीहाउस में किसान मुख्यत टमाटर,शिमला मिर्च,खीरा,गुलाब आदिकी खेती कर रहे है | पॉलीहाउस का वातावरण पौधों की बढ़ोतरी के साथ-साथ इसमें लगने वाले कीड़ों के प्रजनन के लिए भी अनुकूल होता है और कम समय में अधिक संख्या में बढ़कर फसलों को नुकसान पहुंचाते है | प्राय: देखा गया है कि जो किसान इनका उचित रख-रखाव करते है,उनमें कीट समस्या कम आती है | पॉलीहाउस की फसलों में मुख्यतः सेफ मक्खी,तेला,माइट,मिलीबग,व सुंडी नुकसान पहुंचती है अत: इस लेख में कीटों व इनके समन्वित प्रबंधन के बारे में जानकारी दी जा रही है |
सफ़ेद मक्खी:- इस कीट के सफ़ेद रंग के वयस्क व पतली झिल्लीनुमा शिशु पत्तों की निचली सतह से रस चूसते हैं जिसके कारण पत्ते पीले पद जाते है और सुख जाते है यह कीट पत्तों पर चिपचिपा पदार्थ भी छोड़ते है जिस पर काली फफूंदी लगबे से पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया कम हो जाती है|
तेला:- इस कीट के हरे पीले रंग के शिशु व प्रौढ़ कोमल पतियों,शाखाओं व फलों से चिपके रहते है और ज्यादातर समूह में रहकर रस चूसते है | फलस्वरूप पत्तियां मुड़कर पीली हो जाती और सुख जाती है | इनके द्वारा छोड़े हुए चिपचिपे पदार्थ पर काली फफूंदी लगने से पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रय पर बोरा प्रभाव पड़ता है | इसका अधिक प्रकोप होने पर पत्ते मुद जाते है | और पौधों का विकास रुक जाता है |
अष्टपदियां :- पॉलीहाउस फसलों में मुख्यतः लाल,पीली माइट का प्रकोप लगभग सभी फसलों पर होता है | पीली माइट का प्रकोप शिमला मिर्च में पाया जाता है | हरियाणा में पॉलीहाउस फसलों में लाल माइट प्रमुख है | इसका प्रको गर्म व शुष्क वातावरण में अधिक होता है | इसके शिशु व वयस्क पत्तों व अन्य कोमल भागों से रस चूसते है |
थ्रिप्स:- उज एक सर्वभक्षीय कीट है | इसके पीले-भूरे बेलन आकार के शिशु व प्रौढ़ पत्तों से रस चूसते है ग्रस्त पत्तियों मुड़ जाती है | प्रको अधिक होने पर छोटी पर पत्ते तांबे जैसे होकर सूख जाते है | पौधों का विकास पूरी तरह से रुक जाता है |
मिलीबग:- यह कीट छोटे आकार का होता है और उनका शरीर सफ़ेद मोमी रुई से ढका होता है | इसके शिशु एवं व्यस्क दोनों समूह में रहकर नई कोपलों,पत्तों एवं पौधों के अन्य भागों से रस चूसते है पौधों को कमजोर कर दी है पत्ते पीले पड़ जाते है और पौधे मुरझा जाते है | ये क चिपचिपे तरल पदार्थ को भी प्रचुर मात्रा में निकालते है जो की पौधों के पत्तों व अन्य भागों पर गिरता है |
पर्णखनिक कीट:- इस कीट की मादा पत्तों के अंदर अन्डे देती है | अण्डों से निकले शिशु अत्तों के ऊपरी व निचली सतह के बीच टेढ़ी-मेढ़ी सफ़ेद सुरगें बनाकर हरे पदार्थ को नष्ट कर देते है | जिस कारण पौधों की संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है |
सुंडिया:- ये कीट पत्तों की निचली सतह पर समूह में अन्डे देते है जिनमें से गहरे रंग की सुंडिया निकलती है जो शुरू की अवस्था में इकट्ठी रहती हैं तथा बड़े होने पर पत्तों को पूरी तरह नष्ट कर देती है |
समन्वित कीट प्रबंधन:-
पॉलीहाउस के बहार का क्षेत्र खरपतवार मुक्त रखें |
कीट रहित पौधों को ही पॉलीहाउस में लगाएं|
पॉलीहाउस में दो दरवाजे लगाएं|
कीट व जाली का समय-समय पर उचित रख रखाव करें |
किसी भी जगह जाली फटी हुई हो तो उसे ठीक करें जिससे कीट-पंतगे अंदर न जा सके |
किसी भी रासायनिक कीटनाशी का लगातार प्रयोग न करें |
फसल पर कीटनाशक दवाई के छिडकाव और फल तुड़ाई में कम से कम सैट दिनों का अंतर अवश्य रखे |
कीट-पंतगे को पनपने से रोकने के लिए पॉलीहाउस में क्रमिक खेती न करें | 


पॉलीहाउस फसलों के कीट एवं उनका समन्वित प्रबंधन के बारे में जानने के लिए निचे दिए गए विडियो के लिंक पर क्लिक करें |

कद्दूवर्गीय सब्जियों से ले मुनाफा

हरियाणा में घीया,तोरी,लौकी कद्दू टिंडा,करेला,पेठा,खीरा ककड़ी,खरबूजा तरबूज आदि बेल वाली सब्जियों की खेती की जाती है | बेल वाली सब्जियों में बिमारियों के कारण काफी नुकसान होता है | इसलिए किसानों को इन सब्जियों की खेती से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा लेने के लिए इनमें नुकसान पहुँचाने वाली बीमारियों का पूरा ज्ञान होना चाहिए |
चूर्णी फफूंदी :- इस रोग से प्रभावित पौधों के पत्तों,तनों और दुसरे भागों पर फफूंदी की तह जम जाती है | जिसके कारण पत्तियां पीली पड़ कर सुख जाती है पौधों की वृद्धि रुक जाती है | तथा पैदावार पर विपरीत प्रभाव पड़ता है फलों का गुण एवं स्वाद भी ख़राब हो जाता है यह रोग खुश्क मौसम में ज्यादा लगता है |
रोकथाम:- 8-10 किलोग्राम बारीक गंधक प्रति एकड़ का धूड़ा बीमारी लगे हर भाग पर धुड़ने से बीमारी रुक जाती है | धुड़े के स्थान पर 500 गरम घुलनशील गंधक 200 लीटर पानी में प्रति एकड़ के हिसाब से छिडकाव कर सके है |
विशेष सुझाव :- धूड़ा सुबह या शाम के समय करें | अधिक गर्मी के समय धूड़ा न करें |
गंधक खरबूजे पर कभी न धुड़े |
खेत में खरपतवार बिल्कुल न रहने दे |
मृदारोमिल फफूंदी :-
पत्तों की ऊपरी सतह  पर पीले अथवा नारंगी रंग के कोणदार धब्बे बनते है | जो कि शिराओं के बीच सिमित रहते है | प्रकोप बढ़ने पर पत्ते सूख जाते है और पौधे नष्ट हो जाते है |
रोकथाम:- पौधों पर दो ग्राम इन्डोफिल एम-45 या ब्लाइटाक्स-50 प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें |
विशेष सुझाव :-
खरबूजे पर ब्लाइटाक्स-50 का स्प्रे ना करें |
खेत में लौकी जाति के खरपतवारों को नष्ट कर दें |
एक एकड़ में 200 लीटर पानी अवश्य प्रयोग करें |                    
स्कैब :- इस रोग के कारण बेल वाली सब्जियों के पत्तों व फलों पर धब्बे पड़ जाते हैं और अधिक नमी वाले मौसम में इन धब्बों पर गोंद जैसा पदार्थ दिखाई देता है |
रोकथाम:- पौधों पर 400 ग्राम इंडोफिल एम-45 200 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करने से यह बीमारी रोकी जा सकती है |
गम्मी कालर रोट :- यह समस्या विशेषकर खरबूजे में प्राय: अप्रैल-मई में देखने में आती है | इस रोग के प्रभाव से भूमि की सतह पर तना पीला पड़कर फटने लगता हा और फाटे हुए स्थानों से गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ निकलने लगता है |
रोकथाम:- प्रभावित पौधों के टनों की भूमि की सतह के पास एक ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर सिंचाई करें |
मौजेक रोग:- मौजेक विषाणु से होने वाला रोग है | इसलिए इसे विषाणु रोग भी कहते हैं इस रोग से प्रभावित पौधों के पत्ते पीले व कहीं-कहीं से हरे नजर आते हैं | प्रभावित प[ओउधों में फल छोटे बनते है और पैदावार बहुत ही कम मिलती है |
रोकथाम:- मौजक रोग अल (चेपा) द्वारा फैलता है | चेपा को नष्ट करने के लिए कीटनाशक दवाओं जैसे कि 250 मिलीलीटर मैलाथियान 50 ई.सी को 200-250 लीटर पानी में मिलाकर नियमित रूप से दस दिन के अंतराल पर छिड़काव करें |
विशेष सुझाव:- रोग रोधी किस्में उगाएं |
रोगी पौधों को उखाड़ कर जला दें |
खेत में खरपतवार बिल्कुल न रहने दें |
चेपा का फसल उगते ही निरीक्षण करते रहें ताकि उचित समय पर रोकथाम व कार्यवाही की जा सके |

कद्दूवर्गीय सब्जियों के बारे में जानने के लिए निचे दिए गए विडियो के लिंक पर क्लिक करें |
Video Link:- https://www.youtube.com/watch?v=7rZGss31bVc



   

Monday, November 7, 2016

अनार की उन्नत खेती कैसे करें

अनार पौष्टिक गुणों से परिपूर्ण,स्वादिष्ट रसीला एवं मीठा फल है | अनार का रस स्वास्थ्यवर्धक तथा स्फूर्तिदायक होता है | इसके फलों के छिलकों से पेट की बिमारियों की दवाईयां तैयार की जाती है | इसके दानों को धूप में सुखाकर ‘अनारदाना’ भी बना सकते है, जिसका उपयोग विभिन्न व्यंजन बनाने में किया जाता है मेवाड़ अंचल में विशेषकर भीलवाड़ा,चित्तौडगढ़,राजसमन्द आदि जिलों की जलवायु इसकी खेती के लिए अनुकूल है |
जलवायु:- शुष्क एवं अर्ध शुष्क जलवायु अनार उत्पादन के लिए बहुत ही उपयुक्त होती है | पौधों में सूखा सहन करने की अत्यधिक क्षमता होती है | परन्तु फल विकास के समय नमी आवश्यक है | अनार के पौधों में पाला सहन करने की भी क्षमता होती है | फलों के विकास में रात के समय ठण्डक तथा दिन में शुष्क गर्म जलवायु काफी सहायक होती है | ऐसी  पारिस्थितियों में दानों का रंग गहरा लाल तथा स्वाद मीठा होता है | वातावरण एवं मृदा में नमी के अत्यधिक उतार-चढ़ाव से फलों में फटने की समस्या बढ़ जाती है तथा उनकी गुणवत्ता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है |
भूमि:- अनार लगभग सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है परन्तु अच्छी पैदावार के लिए जल निकासयुक्त बलुई दोमट मिट्टी जिसका पी एच मान 7 से 8 के मध्य होता है,उपयुक्त होती है | इसके पौधों में लवण एवं क्षारीयता सहन करने की भी क्षमता होती है |

उन्नत किस्म:-  
भगवा:- इस किस्म के पौधे माध्यम ऊंचाई के होते है | फल आकार में बड़े एवं लाल रंग के होते है |  दाने लाल,रसदार और मीठे एवं खाने में स्वादिष्ट होते है | औसत उपज 20-25 किलो फल प्रति पेड़ है | फल 180-190 दिन में तैयार होते है |
मृदुला :- यह एक अच्छी उपज देने वाली संकर किस्म है | जो गणेश तथा रुसी किस्मों के संयोग से प्राप्त हुई है | इसके फल का आकर मध्यम,रंग लाल तथा देने  गहरे लाल रंग के होते है | फल 140-150 दिन में तैयार होते है |
गणेश:- इस किस्म के पौधे सदाबहार व मध्यम ऊंचाई के होते  है | फल आकार में बड़े एवं पीले-लाल रंग के होते है | दाने हल्के गुलाबी,रसदार और मीठे एवं खाने में स्वादिष्ट होते है | औसत उपज 40-100 फल प्रति पेड़ है |
प्रवर्धन :- अनार के पौधे कलम( कटिंग) एवं गुट्टी से तैयार किये जा सकते है कलम से  पौधे तैयार करने के लिए एक वर्ष पुरानी शाखाओं से प्राप्त 9-10 इंच लम्बी कलमों को 1000 पी.पी.एम.IBA अथवा सेरेडेक्स बी या रूटेक्स से उपचारित करके पौधशाला में लगाते है | कलम लगाने के लिए जनवरी-फरवरी अथवा जून-जुलाई का समय अधिक उपयुक्त होता है |
      गुट्टी द्वारा भी अनार के पौधे तैयार किए जाते है | एक वर्ष पुरानी शाखा से लगभग 2.5-5.0 सेटीमीटर लम्बाई में छाल हटा देते है | उसके  पश्चात इसके उपरी भाग पर 10,000 पीपीएम आई.बी ए.हार्मोन लगा देते है | इसके पश्चात् अच्छी जड़ विकास होने पर इसको पेड़ से काट कर नर्सरी में लगा देते है |
पौधे लगाना :- दूरी 5 गुना 5 मीटर या 5 गुना 4 मीटर,गड्डे का आकार 100 सेटीमीटर गुना 100 सेटीमीटर रखे |
गड्ढे भराई का मिश्रण :- प्रत्येक गड्डे में 5-7 किलो वर्मीकम्पोस्ट अथवा 20-25 किलो गोबर की खाद,1 किलो सिंगल सुपर फास्फेट तथा 100 ग्राम मिथाइल पैराथियान चूर्ण को मिट्टी उपलब्ध हो तो उसकी भी कुछ मात्रा गड्डे में डालनी चाहिए | गड्डे को मानूसन आने से पहले ही भर देना चाहिए | पौधे लगाने का कार्य जुलाई-अगस्त अथवा फरवरी मार्च में करना चाहिए |

अन्तराशस्य :- आरम्भ के तीन वर्षों तक बाग में सब्जियां,दाल वाली फसलें आदि ली जा सकती है

साधना :- अनार के पौधों को उचित आकार व ढांचा देने के लिए स्थाई एवं काट-छांट की नितांत आवश्यकता होती है | इस स्थान पर चार तने रखकर अन्य शाखाओं को हटाते रहें |
सिंचाई :- अच्छी गुणवत्ता एवं अधिक फल उत्पादन के लिए गर्मी के मौसम में 7-10 दिन के अन्तराल पर तथा सर्दी में 15-20 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए | फल विकास के समय वातावरण तथा मृदा में नमी का अंसतुलन रहता है | तो फल फट जाते है | इसके लिए फल विकास के समय भूमि तथा वातावरण से निरतंर पर्याप्त नमी बनाये रखनी चाहिए |
                   खाद एवं उर्वरक
अनार के पौधों को निम्न तालिका के अनुसार खाद एवं उर्वरक देवें
पेड़ की आयु वर्ष मे
                      मात्रा किलोग्राम प्रति पौधा

गोबर की खाद
यूरिया
सुपर फास्फेट
पोटाश
1 वर्ष
8-10
0.100
0.250
0.500
2 वर्ष
16-20
0.200
0.500
0.050
3 वर्ष
24-30
0.300
0.750
0.100
4 वर्ष
32-40
0.400
1.0
0.150
5 वर्ष
40-50
0.500
1.25
0.150

मृग बहार के लिए गोबर की खाद,सुपर फास्फेट,म्यूरेट ऑफ़ पोटाश की पूरी मात्रा व यूरिया की आधी मात्रा को जून माह में तथा शेष यूरिया को सितम्बर माह  में देना चाहिए | अम्बे बहार के लिए गोबर खाद ,सुपर फास्फेट,म्यूरेट ऑफ़ पोटाश की पूरी मात्रा व यूरिया की आधी मात्रा को दिसम्बर-जनवरी माह में तथा शेष यूरिया को अप्रैल माह में देना चाहिए |
बहार नियंत्रण :-  अनार में वर्ष में तीन बार फूल आते है,जिसे ‘बहार’ कहते हैं |
1.अम्बे बहार (जनवरी-फरवरी)
2.मृग बहार (जून-जुलाई )
3.हस्त बहार (सितम्बर-अक्टूबर )
      वर्ष में कई बार फूल आना व फल आते रहना उपज एवं गुणवत्ता की दृष्टि से ठीक नही रहता है | इसलिए अवांछित बहार का नियंत्रण कर जलवायु के अनुसार कोई एक बहार की फसल लेना लाभदायक रहता है |
बहार नियंत्रण :- तीनों बहारों में से कोई एक इच्छित बहार का उत्पादन लेने हेतु किए जाने वाले प्रबन्ध को ‘बहार उत्पादन’ कहा जाता है | जिसका जल उपलब्धता,बाजार भाव,गुणवत्ता इत्यादि के अनुरूप चयन किया जाता है |
      मृग बहार लेने के लिए पौधों में मार्च-अप्रैल में सिंचाई बंद कर  दी जाती है | तथा मई माह में थावलों की खुदाई करके खाद एवं उर्वरक दिये जाते है तथा हल्की सिंचाई की जाती है | जिससे जून-जुलाई में फूल आते है | फल के विकास के समय आवश्यकतानुसार लगातार सिंचाई करते रहना चाहिए |
      अम्बे बहार लेने के लिए पौधों को दिसम्बर माह में पानी बंद कर देना (तान देना ) चाहिए | जनवरी माह में दूसरे सप्ताह में खाद व उर्वरक देने के पश्चात् सिंचाई करनी चाहिए | जिसके फलस्वरूप फरवरी मार्च में फूल आते है |
रसायन द्वारा पत्तियों को गिराना :- 30 से 40 दिन मिट्टी की स्थिति के अनुसार पानी बंद रखा जाता है | पौधों में जब तनाव के लक्षण दिखाई देवें तब इथरल 2 मिलीलीटर/लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करके पत्तियों को गिराया जाता है | इसके पश्चात् एक हल्की सिंचाई करनी चाहिए तथा खाद व उर्वरक देकर सिंचाई करनी चाहिए | इस प्रकार से पौधों पर भरपूर फूल आएंगे |
बहार
फूल आना
फलों की तुड़ाई
नोट
अम्बे बहार
जनवरी-फरवरी
जुलाई –अगस्त
अधिक फूल व फल,फलों का रंग कम लाल
मृग बहार
जून-जुलाई
दिसम्बर –जनवरी
कीट व बीमारी का ज्यादा प्रकोप
हस्त बहार
सितम्बर-अक्टूबर
फरवरी-अप्रैल
कम कीट व बीमारी का प्रकोप फलों की गुणवत्ता अच्छी,कम फूल व फल

अनार की खेती के बारे में जानने के लिए निचे दिए गए विडियो के लिंक पर क्लिक करें |

Video link:https://www.youtube.com/watchv=3yI7nUcrR7I                                                                                                                   

Monday, October 31, 2016

करेला की उन्नत खेती कैसे करें

उन्नत किस्में :

कोयम्बटूर लौंग :-
यह किस्म गर्मी के मौसम की अपेक्षा बरसात के मौसम के लिए अधिक उपयुक्त है | पौधों का फैलाव अच्छा होता है व काफी फल लगते है | फल लम्बे,सफ़ेद रंग के व कच्चे होते है |

पूसा दो-मौसमी:-
यह किस्म गर्मी व बरसात दोनों मौसम के लिए उपयुक्त है पहली तुड़ाई 55-60 दिन में हो जाती है | बेलें काफी फैलती हैं व इनका तना गहरे-हरे रंग का होता है | पत्ते चौड़े,गहरे कटाव वाले,हरे रंग के रोएंदर होते हैं | फल लम्बे व मध्मय मोटाई वाले होते हैं | हरे फलों पर बिना कटी हुई लगातार धारियां होती हैं तथा इनकी सतह चिकनी होती हैं |

भूमि की तैयारी :-
जैसा कि खरबूजा में बताया गया है |

बिजाई का समय:-
गर्मी की फसल के लिए फरवरी-मार्च  तथा  बरसात की  फसल के लिए जून-जुलाई का समय उपयुक्त है |

बीज की मात्रा :-
एक एकड़ के लिए  1.5 से 2.0 किलोग्राम बीज काफी रहता है |

बिजाई की विधि:-
बीज को 1.5 मीटर चौड़ी उठी हुई क्यारियों में नालियों के किनारों पर लगाया जाता है | दो पौधों के बीच 45 सेटीमीटर का फासला रखें | बिजाई  से पहले बीज को रात भर पानी में भिगोकर रखें | ऐसा करने से अंकुरण जल्दी होता है |

फलों की तुड़ाई व पैदावार :-
खाने के लिए हल्के-हरे रंग के कच्चे फल ही तोड़ें | गर्मी की फसल से 24-30 किवंटल तथा बरसात की फसल से 40 किवंटल प्रति एकड़ पैदावार हो जाती है |

वृद्धि नियामक का प्रयोग:-
पूसा दो मौसमी किस्म में 2 व 4 सच्ची पत्तियां आने पर “साइकोसिल” 250 पी.पी.एम.( 10 मिलीलीटर “साइकोसिल” 50 प्रतिशत को 20 लीटर पानी में घोल दें ) का छिड़काव करने से पैदावार बढ़ जाती है |

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तर-ककड़ी की उन्नत खेती कैसे करें

उन्नत किस्में :-
लखनऊ अर्ली :-
यह एक अगेती किस्म है इसके फल लम्बे,हल्के-हरे रंग के तथा नियमित तुड़ाई करने पर बहुतायत में लगते हैं |
करनाल सलैक्शन :-
यह अधिक संख्या में फल देने वाली किस्म है | फल लम्बे,हल्के-हरे रंग के,पतले,कुरकुरे,गुद्देदार व सुगन्धित होते है |
भूमि की तैयारी:-
काली तोरी व चिकनी तोरी के समान |
बिजाई का समय :-
 इसकी बिजाई का समय फरवरी से मार्च तक है परन्तु अगेती फसल लेने के लिए पालिथीन की थैलियों में बीज की जनवरी के महीने में बिजाई की जा सकती है | पौध सहित इन थैलियों को जमीन में गाड़ दिया जाता है |
बीज की मात्रा :-
एक एकड़ भूमि में तर-ककड़ी बोने के लिए एक किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है |
फलों की तुड़ाई:-
नरम व चिकने फलों को प्रात:
अथवा शाम के समय तोड़ लिया जाता है | तोड़ते समय फलों की लम्बाई 15-30 सेटीमीटर होनी चाहिए | अगेती फसल से अच्छे दाम प्राप्त करने के लिए फलों को कुछ पहले तोड़ लेना चाहिए  जबकि पछेती फसल के फल कुछ देर में तोड़े जाते है | तर-ककड़ी की औसत पैदावार 40-50 किवंटल प्रति एकड़ होती है |

तर-ककड़ी में इथ्रेल का प्रयोग:-
तर-ककड़ी फसल से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए  इथ्रेल नामक रसायन के 250 पी.पी,एम. घोल (10 मिलीलीटर इथ्रेल 50 प्रतिशत को 20 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़)  का छिडकाव पौधों की 2 और 4 सच्ची पतियों की अवस्था में दो बार करने से फसल में वृद्धि होती है | इस रसायन के प्रयोग से फलों की संख्या प्रति पौधा व वजन में बढ़ात्तरी होती है |


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